दांत – Teeth – दाँत


दांतों से भोजन चबाया जाता है, अतः दांत बड़े आवश्यक और उपयोगी है।

बच्चा जब जन्म लेता है, तब उसके मुख में एक भी दाँत नहीं रहता, और यही कारण है कि बालक कोई भी ठोस पदार्थ नहीं खा सकता।

दूध या अन्य तरल पदार्थ, जैसे फलों का रस, जिनमें चबाने की कोई आवश्यकता नहीं रहती, उसका भोजन होते है।

मनुष्यों के दांत दो बार निकलते हैं।


दूध के दांत (Milk Teeth)

जब बालक छह या सात महीने का होता है, तब उसके दांत निकलने आरंभ होते है तथा दो वर्ष की आयु तक पूरे 28 दाँत निकल आते हैं।

ये दूध के दांत (milk teeth) कहलाते हैं।

सच बात यह है कि दांत इस अवस्था पर शरीर में कहीं से अचानक नहीं आ जाते। जन्म से ही ये मसूड़ों के अन्दर मौजूद रहते हैं, और धीरे धीरे वहीं पर बढ़ते रहते हैं और समय आने पर मसूड़ों के बाहर निकल आते हैं।

दूध के दांतों के नीचे मसूड़ों के भीतर स्थायी दाँतों (permanent teeth) की जड़े भी आरम्भ से ही मौजूद रहती हैं और ये वहीं पर धीरे-धीरे बढ़ते और मजबूत होते रहते हैं।

जब बालक लगभग छह वर्ष का होता है उस समय तक कुछ स्थायी दाँत आवश्यकतानुसार बढ़ जाते हैं और तब ये दूध के दाँतो को आगे की ओर ठेलते हैं।

परिणामस्वरूप दूध के दाँतो की जड़े कमजोर पड़ जाती हैं, और छह वर्ष की आयु से दूध के दाँत गिरना प्रारम्भ हो जाते हैं।

जब कोई दूध का दांत गिर जाता है, तब उसके नीचे का स्थायी दाँत कुछ ही दिनों बाद उसके स्थान पर बाहर निकल पाता है।


स्थायी दाँत (Permanent Teeth)

इस प्रकार होते-होते 12 से 14 वर्ष तक की आयु में सब दूध के दांत गिर जाते हैं और उनकी जगह स्थायी दाँत निकल आते हैं।

लगभग 20 वर्ष की आयु तक स्थायी दाँत 28 ही रहते हैं।

उसके बाद ऊपर तथा नीचे के जबड़ों में दोनों ओर एक-एक डाढ़ और निकलती है।

ये चार डाढे बुद्धि-डाढ़ (wisdom teeth) कहलाती है।

इस प्रकार युवावस्था में पहुंचने पर दाँतो की संख्या 32 हो जाती है।

कभी-कभी लोगों के एक, दो या तीन ही बुद्धि-डाढ़ निकल कर रह जाती हैं। उस दशा में दांतों की संख्या कम रहती है।


दाँतों को चार समूह

प्रत्येक जबड़े के दाँतों को हम चार समूहों में बाँटते हैं।

सामने के चार दाँत छेदक दन्त (incisors) कहलाते हैं । ये भोजन को पकड़ कर काटने का काम करते हैं।

इनके दोनों ओर एक-एक दांत होते हैं जो सुआ (canine teeth) कहलाते हैं। ये नुकीले तथा अन्य दांतों की अपेक्षा लम्बे होते हैं। ये भी काटने का काम करते हैं।

इनके बाद दोनो तरफ चार-चार डाढ़ें होती है।

पहली दो डाढ़े अग्रचवर्णक दन्त (premolars) तथा पिछली दो चवर्णक दन्त (molars) कहलाती हैं।

बुद्धि-दाँत भी इस श्रेणी (चवर्णक दन्त ) में आते हैं।

अतः इनके निकलने पर चवर्णक दन्त की संख्या प्रत्येक ओर तीन-तीन हो जाती है।


दाँत की बनावट

दाँत का जितना भाग हम देखते हैं, लगभग उतना ही, वरन उससे अधिक, भाग मसूड़ों के अन्दर छिपा रहता है।

दांत के तीन भाग

पूरे दांत को हम तीन भागों में बाँट सकते है –

शिखर (crown),
ग्रीवा (neck) और
मूल (root)

मसूड़े के ऊपर दांत का जो भाग हम देखते है, वह शिखर अर्थात क्राउन कहलाता है।

मसूड़े के अन्दर दबा हुआ भाग ग्रीवा अर्थात नेक कहलाता है।

ग्रीवा के नीचे का सिरा, दाँत की जड़ या मूल यानी की रुट है।

जबड़े की हड्डी के बीच में दांतों के लिये स्थान बने रहते हैं, और उन्ही में दांत मजबूती से जकड़े रहते हैं।

जबड़े की हड्डी के इन गड्ढो को एलवियोली (alveoli) कहते हैं।

दांत का अंदर का भाग

अन्दर से दांत खोखला होता है।

इस खोखले भाग को दन्तकोष्ठ (pulp cavity) कहते हैं, और इसमें एक प्रकार का गूदा, दन्त मज्जा (pulp ) भरा रहता है।

इस भाग में रक्तनलियाँ तथा नाड़ियाँ रहती हैं।

दाँत जिस वस्तु से बना है, वह डेंटाइन (dentine) कहलाती है।

दाँत की जड़ के पास के भाग में, डेंटाइन के ऊपर, सीमेंटम (cementum) नामक एक कड़े पदार्थ की पतली पर्त रहती है।

इनेमल

शिखर पर सीमेंटम् का पर्त न होकर, इनेमल (enamel) नामक एक दूसरे पदार्थ की पर्त रहती है।

इनेमल बहुत सख्त यानी की कड़ा होता है, और दांतों को मजबूती देता है।

इसके कारण दांत चबाने का कार्य करने में घिसते नहीं।

दांतों की सफेदी भी इनेमल के कारण ही होती है।

जब दांतों का इनेमल निकल जाता है, तो दांतों की चमक और सफेदी कम हो जाती है।


दांतों का खराब होना

कोई खाद्य सामग्री दांतों के बीच में फंसी रह जाने से सड़ने लगती है, और धीरे-धीरे उसका विष दांतों पर असर करने लगता है।

इससे ऊपर का इनेमल खराब होकर नष्ट होने लगता है, और दांत देखने में खराब लगने लगते हैं।

साथ ही इनेमल के कड़े पर्त के (जो भीतरी दाँत की रक्षा का साधन है) हट जाने से विष आसानी से अन्दर पहुँच जाता है और फिर वहाँ के गूदे को सड़ाने लगता है।

गूदे के खराब होने से दांत खोखला होकर बेकाम काम हो जाता है, और शीघ्र ही टूट जाता है।

इतना ही नहीं, मुख में स्थित यह विषैला पदार्थ भोजन में मिल जाता है, और फिर भोजन के साथ पेट में पहुँच कर, पाचनशक्ति यानी डाइजेशन को भी खराब करता है, और इसका प्रभाव सारे शरीर पर पड़ता है।

अतः मुख और दांतों के सम्बन्ध में बहुत ही सावधान रहने की आवश्यकता है।