हाइपरटेंशन – हाई ब्लड प्रेशर – Hypertension


हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर को हिंदी में उच्च रक्तचाप कहते है।

उच्च रक्तचाप के इस आर्टिकल, पहले हाइपरटेंशन के बारे में, 7 – 8 पॉइंट्स में सारांश में दिया गया है, उसके बाद विस्तार से की –

  • हाइपरटेंशन में क्या होता है,
  • उसके लक्षण, कारण,
  • हाई ब्लड प्रेशर की वजह से शरीर में और क्या तकलीफें होती हैं ,
  • निदान, उपचार और
  • हाइपरटेंशन से कैसे बचना चाहिए।

हाइपरटेंशन सारांश – summary

1. हाइपरटेंशन क्या है?

हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है, जिसमें ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।

ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, मतलब, धमनियों में रक्त का दबाव बढ़ जाता है।

  • धमनियां अर्थात आर्टरीज
    • arteries

सामान्य ब्लड प्रेशर – 120/80 mmHg रहता है।

हाई ब्लड प्रेशर में ब्लड प्रेशर, ऊपर दी गयी नॉर्मल लेवल्स से बढ़ जाता है। यदि ब्लड प्रेशर 140/90 mmHg से ज्यादा रहता है, तब उसे हाइपरटेंशन कहते है।

2. हाइपरटेंशन में कौन से लक्षण दिखाई देते है?

अधिकांश मरीजों में, हाइपरटेंशन के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए इसे साइलेंट किलर कहते हैं।

क्योंकि भले ही लक्षण दिखाई ना देते हो, लेकिन बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों को, जैसे कि ह्रदय, ब्रेन, किडनी, आंखें आदि को, नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

कुछ मरीजों में, सिर दर्द, सांस की तकलीफ, चक्कर आना जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं, किंतु वह भी जब ब्लड प्रेशर काफी बढ़ जाता है।

3. हाइपरटेंशन है, यह कैसे पता चलता है?

ब्लड प्रेशर का निदान, आसानी से किया जा सकता है।

जांच के लिए डॉक्टर, स्फिग्मो-मेनोमीटर नामक उपकरण का उपयोग करते हैं।

आप घर पर भी, डिजिटल ब्लड प्रेशर मॉनिटर से ब्लड प्रेशर की रीडिंग ले सकते है।

4. हाइपरटेंशन का उपचार कैसे किया जाता है?

यदि हाई बीपी है, तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार, दवा से इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है, जिससे कि इससे होने वाले, दुष्परिणामों से बचा जा सके।

हाई बीपी के उपचार में दवा के साथ साथ कुछ बातें बहुत जरूरी है, और वो है –

  • संतुलित और सेहतमंद आहार
  • नियमित व्यायाम, योगासन
  • तनाव कम करने के लिए ध्यान और
  • वजन पर नियंत्रण

5. ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखना क्यों जरूरी है?

यदि हाइपरटेंशन नियंत्रण में नहीं किया गया, तो कई गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जैसे कि, ह्रदय रोग, किडनी और ब्रेन से संबंधित समस्याएं, विकसित हो सकती है।

6. हाइपरटेंशन क्यों होता है?

तनाव, व्यायाम की कमी, अनुचित आहार, जैसे की हाई फैट वाला भोजन, निष्क्रिय और गलत जीवनशैली के कारण हाई बीपी एक आम समस्या बन गया है।

7. क्या हाई बीपी से बचा जा सकता है?

ध्यान, हमें तनाव से मुक्त रहने में मदद करता है और नियमित व्यायाम और योगासन से, वजन नियंत्रण में रहता है।

इसलिए ध्यान, योगासन, आहार पर नियंत्रण और संतुलित आहार की सहायता से, हम हाई बीपी से बच सकते हैं।

और यदि, ब्लड प्रेशर बढ़ गया है, तो यहीं चीजें, हमें ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखने में, काफी मदद करती हैं।

अब हम हाइपरटेंशन के बारे में विस्तार से देखेंगे –


हाइपरटेंशन – हाई ब्लड प्रेशर – Hypertension

Index – सूचि


ब्लड प्रेशर अर्थात रक्तचाप क्या है?

What is Blood Pressure?

ब्लड प्रेशर बीमारी नहीं है। ब्लड प्रेशर शरीर में बहुत जरूरी है।

यदि ब्लड में प्रेशर नहीं रहेगा, तो ब्लड एक ही जगह पर रुक जाएगा।

प्रेशर की वजह से ही, शरीर में ब्लड, ह्रदय से आगे की ओर बढ़ता हुआ, सारे शरीर में पहुंचता है।

लेकिन, ब्लड प्रेशर का बढ़ जाना, अर्थात हाई ब्लड प्रेशर एक गंभीर स्वस्थ्य समस्या है।

सामान्य रक्तचाप कितना रहता है?

नार्मल ब्लड प्रेशर, 120/80 mmHg रहता है।

रक्तचाप दो संख्याओ से व्यक्त किया जाता है – एक संख्या के ऊपर एक दूसरी संख्या – जैसे 120/80 (120 बाय 80)।

  • इस रीडिंग में,
  • 120 को सिस्टोलिक प्रेशर, या ऊपर का प्रेशर और
  • 80 को डायस्टोलिक प्रेशर, या नीचे का प्रेशर कहते है।
  • स्वस्थ व्यक्ति में
  • ऊपर की संख्या – 120 से 139 के बीच और
  • नीचे की संख्या – 80 से 89 के बीच रहती है।

प्रत्येक व्यक्ति का रक्तचाप भिन्न होता है। प्रत्येक व्यक्ति का रक्तचाप प्रति घंटे और प्रतिदिन भी बदलता रहता है। लेकिन ऊपर का प्रेशर 120 से 139 के बीच और नीचे का प्रेशर 80 से 89 के बीच में रहना चाहिए।

हाइपरटेंशन में ब्लड प्रेशर कितना हो जाता है?

यदि ऊपर की संख्या 140 से अधिक हो जाए और नीचे की संख्या 90 से अधिक हो जाए तो उसे रक्तचाप अधिक हो गया अर्थात हाई बीपी या उच्च रक्तचाप कहते हैं।

ब्लड प्रेशर बढ़ जाने की वजह से कौन से लक्षण दिखाई देने लगते हैं?


हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण क्या है?

Hypertension Symptoms

अधिकांश मरीजों में, हाई ब्लड प्रेशर के लक्षण, नजर नहीं आते हैं।

कुछ मरीजों में नीचे दिए गए लक्षण नजर आ सकते हैं, किंतु वह भी जब ब्लड प्रेशर काफी बढ़ जाता है तब।

  • सिर में दर्द,
  • सांस की तकलीफ,
  • चक्कर आना या
  • नाक से खून बहना

इसलिए, 18 वर्ष के बाद, प्रत्येक 2 से 3 वर्षों में, ब्लड प्रेशर की जांच करा लेनी चाहिए।

और 40 वर्ष के बाद, प्रत्येक वर्ष, ब्लड प्रेशर की जांच कराना चाहिए।

यदि जोखिम कारक तत्व मौजूद है, जैसे कि मोटापा या परिवार में किसी को ब्लड प्रेशर की समस्या है, तो 18 वर्ष के बाद से ही, हर वर्ष ब्लड प्रेशर की जांच कराना चाहिए।


हाई ब्लड प्रेशर के कारण

Causes of Hypertension

हाई बीपी के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, किंतु यह कई गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है जैसे कि हार्ट अटैक, पैरालिसिस, किडनी के रोग आदि। इसलिए हाइपरटेंशन को साइलेंट किलर भी कहा जाता है।

इसलिए उचित यही है की ध्यान, योग और आसन की सहायता से इसे विकसित ही ना होने दें।

ब्लड प्रेशर के कारण
Hypertension Causes

हाई बीपी दो प्रकार के होते हैं –

प्राथमिक रक्तचाप या प्राइमरी हाइपरटेंशन (primary hypertension) और
माध्यमिक रक्तचाप या सेकेंडरी हाइपरटेंशन (secondary hypertension)
प्राथमिक रक्तचाप (primary hypertension)

प्राथमिक रक्तचाप सबसे आम प्रकार का रक्तचाप है। अधिकांश हाई बीपी के मरीजों में, 90 से 95% मरीजों में, प्राथमिक रक्तचाप ही पाया जाता है।

इस प्रकार के रक्तचाप में पहचान योग्य कारण नहीं रहता है और यह रक्तचाप कई वर्षों तक धीरे-धीरे विकसित होता है।

हालांकि इस प्रकार के हाइपरटेंशन में कारण का पता नहीं लग पाता है, किंतु खान-पान और रहन-सहन से संबंधित कुछ चीजें इसका खतरा बढ़ा देती है, जैसे कि भोजन में अधिक नमक, मोटापा, धूम्रपान, शराब का अधिक सेवन, पारिवारिक इतिहास, अनुवांशिक आदि। उच्च रक्तचाप के जोखिम कारक तत्व नीचे विस्तार से दिए गए हैं।

माध्यमिक रक्तचाप या सेकेंडरी हाइपरटेंशन (secondary hypertension)
माध्यमिक रक्तचाप में किसी रोग की वजह से या दवा की वजह से रक्तचाप बढ़ जाता है, इसलिए माध्यमिक रक्तचाप में कारण का पता लग जाता है। इसमें रक्तचाप काफी तेजी से बढ़ता है, और प्राथमिक रक्तचाप की अपेक्षा यह गंभीर होता है।

माध्यमिक रक्तचाप के कुछ मुख्य कारण हैं –

किडनी का रोग
एड्रिनल ग्रंथि का रोग
थायराइड रोग जैसे कि हाइपरथायरायडिज्म
जन्मजात धमनियों की बीमारियां
कुछ दवाइयां जैसे कि गर्भनिरोधक दवा, सर्दी या खांसी की दवा, दर्द निवारक दवा आदि
भले ही प्राथमिक उच्च रक्तचाप, जो कि सबसे आम प्रकार का रक्तचाप है, में कारण नजर नहीं आता है, किंतु कुछ ऐसे तत्व है जो उच्च रक्तचाप होने की संभावना बढ़ा देते हैं। ऐसे तत्वों को रक्तचाप के जोखिम कारक तत्व कहते हैं।


रक्तचाप के जोखिम कारक तत्व

Hypertension Risk Factors


उम्र (Age) –
आयु बढ़ने के साथ-साथ हाइपरटेंशन होने की संभावना बढ़ती जाती है। 65 साल की आयु तक पुरुषों में रक्तचाप होने की संभावना अधिक होती है। 65 वर्ष के पश्चात महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा हाई बीपी की संभावना अधिक रहती है।

परिवार का इतिहास (family history) –
Obesity Family History
यदि आपके परिवार के किसी सदस्य को जैसे कि माता-पिता या भाई-बहन को हाई बीपी है तो आपको भी हाइपरटेंशन होने के संभावना बढ़ जाती हैं।

अधिक वजन या मोटापा (obesity)
Overweight Obesity
यदि आपका वजन अधिक है, तो सभी अंगों तक ऑक्सीजन और पोषक पदार्थ भेजने के लिए, ह्रदय को अधिक रक्त, धमनियों के द्वारा भेजना पड़ता है।

इसलिए धमनियों की दीवारों पर दबाव बढ़ जाता है, और अधिक वजन वाले व्यक्तियों में उच्च रक्तचाप की संभावना बढ़ जाती है।

गतिहीन जीवन शैली

गतिशील जीवन शैली वाले मनुष्य में सामान्य मनुष्य की अपेक्षा ह्रदय गति अधिक होती है, इसलिए ब्लड प्रेशर होने की संभावना बढ़ जाती है।

निष्क्रिय जीवनशैली और व्यायाम में कमी के कारण वजन भी बढ़ता जाता है और जैसा की हमने देखा मोटापा भी हाइपरटेंशन का एक जोखिम कारक तत्व है।

धूम्रपान (Tobacco)
Smoking
तंबाकू और धूम्रपान न सिर्फ ब्लड प्रेशर बढ़ाते हैं बल्कि धमनियों की दीवारों को नुकसान भी पहुंचाते है और उनका लचीलापन कम करते हैं।

हमारे धमनियों की दीवारें लचीली होती है। इसी लचीलेपन के कारण रक्त आगे की ओर बढ़ता है और सारे अंगो में पोषक पदार्थ पहुंच जाता है, और ब्लड प्रेशर सामान्य स्तर पर बना रहता है।

किंतु धूम्रपान और तंबाकू धमनियों की दीवारों का लचीलापन धीरे-धीरे कम करते हैं, जिसके कारण ब्लड प्रेशर धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।

भोजन में अधिक नमक का सेवन
Salt in Diet
भोजन में अधिक नमक का सेवन शरीर में नमक की मात्रा को बढ़ा देते हैं और यही अधिक नमक शरीर में पानी के स्तर को बढ़ा देते हैं जिसकी वजह से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।

अधिक शराब का सेवन

अधिक शराब की मात्रा भी ह्रदय के लिए और धमनियों के लिए हानिकारक है जिसके कारण ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है।

तनाव (stress)
Stress Tension
तनाव ब्लड प्रेशर बढ़ा देता है।

कुछ लोग तनाव दूर करने के लिए धूम्रपान या शराब का सेवन करते हैं या अधिक भोजन करते हैं। किंतु तनाव दूर करने के ये उपाय तनाव तो दूर नहीं कर पाते हैं बल्कि स्ट्रेस के कारण जो ब्लड प्रेशर बढ़ गया है उसे और गंभीर बना देते हैं।

पोटेशियम की कमी

समुचित आहार से प्राप्त पोटेशियम हमारे शरीर में सोडियम की मात्रा को सामान्य रखने में मदद करता है यदि पोटेशियम की कमी हो जाए तो सोडियम बढ़ जाता है और ब्लड प्रेशर अधिक हो जाता है।


हाइपरटेंशन की जटिलताएं (दुष्परिणाम)


Hypertension Complications

हाइपरटेंशन में धमनियों में रक्त का अधिक दबाव, धमनियों की दीवारों को नुकसान पहुंचाता है और साथ ही साथ शरीर के अंगों को भी नुकसान पहुंचता है।

यदि रक्तचाप को नियंत्रण में नहीं किया गया तो कई महत्वपूर्ण अंगों जैसे कि ह्रदय, किडनी, ब्रेन से संबंधित गंभीर समस्याएं हो सकती है। क्योंकि जितना अधिक ब्लड प्रेशर रहता है, उतना ही शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचता है।

उच्च रक्तचाप की जटिलताएं
Hpertension Complications

हाइपरटेंशन की जटिलताएं (दुष्परिणाम) इस प्रकार है –

ह्रदय रोग, हार्ट अटैक (Heart Attack)
हाइपरटेंशन के कारण धमनियों के दीवारों का लचीलापन कम होने लगता है और वह सख्त होती जाती है। धमनियों के अंदर ‘प्लाक’ जमने लगता है, जिसे एथेरोस्क्लेरोसिस (atherosclerosis) कहते हैं और जिसके कारण कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती है।

यदि हृदय की धमनियों में प्लाक जमा हो जाए, तो ह्रदय की मांसपेशियों में होने वाले रक्त संचार में कमी आ जाती है, और हार्ट अटैक जैसी गंभीर समस्या हो सकती है।

स्ट्रोक (Stroke)
जैसा की हमने देखा ह्रदय की धमनियों में प्लाक जमा होने से हार्ट अटैक हो सकता है, उसी प्रकार ब्रेन की धमनियों में यदि प्लाक जमा हो जाए, तो ब्रेन में रक्त संचार कम हो जाता है और स्ट्रोक जैसी गंभीर समस्या की संभावना बढ़ जाती है।

एन्यूरिज़्म (धमनीविस्फार, Aneurysm)
हाइपरटेंशन के कारण रक्त वाहिका की दीवार कभी-कभी किसी एक स्थान पर कमजोर हो जाती है, और बाहर की ओर फूल जाती है, जिसे एन्यूरिज्म कहते हैं।

कमजोर दीवार के कारण उस स्थान पर एन्यूरिज्म फट सकता है और यह मरीज के लिए जानलेवा भी हो सकता है।

हार्ट फेलियर – हृदय का रुक जाना (Heart Failure)
धमनियों में अधिक दबाव के कारण ह्रदय को धमनियों में रक्त भेजने के लिए ज्यादा फोर्स लगाना पड़ता है, अथवा ज्यादा कार्य करना पड़ता है।

इस वजह से ह्रदय के दीवारों की मोटाई बढ़ते जाती है और कुछ वर्षों के बाद धीरे-धीरे ह्रदय के कार्य करने की क्षमता में कमी आती जाती है, जिसे हार्ट फेलियर कहते है।


हाइपरटेंशन का निदान और श्रेणी

Hypertension Diagnosis

ब्लड प्रेशर की जांच डॉक्टर स्फिग्मो-मेनोमीटर (रक्तचापमापी यन्त्र) नामक उपकरण की सहायता से करते हैं।

स्फिग्मोमेनोमीटर का कफ बांह में कोहनी के ऊपर लगाया जाता है, और स्टेथोस्कोप की सहायता से रक्तचाप की जांच की जाती है।

रक्तचाप दो संख्याओं से व्यक्त किया जाता है, पहली या ऊपर की संख्या जिसे सिस्टोलिक प्रेशर (sysolic pressure) और दूसरी या नीचे की संख्या जिसे डायास्टोलिक प्रेशर (diastolic pressure) कहते है।

सामान्य रक्तचाप – 120/80 mmHg

जैसा की हमने “रक्तचाप क्या है” इस लेख में देखा की ह्रदय 1 मिनट में 60 से 100 बार धड़कता है। एक धड़कन में ह्रदय एक बार संकुचित होता है और बाद में शिथिल होता है।

रक्तचाप की पहली अर्थात ऊपर की संख्या, ह्रदय जब संकुचित होता है उस समय जो धमनियों में दबाव रहता है, उस दबाव को दर्शाती है।

दूसरी या निचे की संख्या, ह्रदय जब शिथिल होता है तब धमनियों में जो दबाव रहता है, उस दबाव को दर्शाती है।

इसलिए 120/80 mmHg में 120 है सिस्टोलिक प्रेशर अर्थात ऊपर की संख्या और 80 है डायास्टोलिक प्रेशर अर्थात निचे की संख्या।


रक्तचाप की श्रेणी – क्लासिफिकेशन

Blood pressure classification

रक्तचाप की संख्या के आधार पर रक्तचाप को चार श्रेणियों में रखा गया है।
सामान्य रक्तचाप, प्री हाइपरटेंशन, स्टेज 1 या चरण 1 हाइपरटेंशन और स्टेज 2 या चरण 2 हाइपरटेंशन

सामान्य रक्तचाप – 120/80 mmHg
प्री-हाइपरटेंशन – 120 से 129 / 80 mmHg
स्टेज 1 या चरण 1 हाइपरटेंशन – 130 से 139 / 80 से 89 mmHg
स्टेज 2 या चरण 2 हाइपरटेंशन – 140 mm Hg से ज्यादा

सामान्य रक्तचाप 120/80 mmHg रहता है और यह प्रेशर शरीर में रक्त प्रवाह के लिए जरूरी है।

प्री-हाइपरटेंशन, यह सामान्य रक्तचाप से थोड़ा अधिक किंतु उच्च रक्तचाप से पहले की स्थिति है। प्री-हाइपरटेंशन की स्थिति भविष्य में हाइपरटेंशन की संभावना को दर्शाती है। यदि इस समय रक्तचाप को नियंत्रण में करने के उपाय नहीं किए गए तो भविष्य में यह स्थिति उच्च रक्तचाप में परिवर्तित हो सकती है।

हालांकि रक्तचाप की दोनों संख्याएं महत्वपूर्ण है किंतु 50 वर्ष की उम्र के बाद ऊपर वाली संख्या का महत्व ज्यादा हो जाता है।

65 वर्ष से अधिक उम्र के रक्तचाप के मरीजों में ऊपर वाली संख्या का अधिक होना ज्यादा आम है।

हाइपरटेंशन के निदान की पुष्टि के लिए डॉक्टर दो से तीन बार कुछ दिनों के अंतराल में ब्लड प्रेशर की जांच करते हैं।

हाइपरटेंशन के निदान की पुष्टि के बाद डॉक्टर, हाई ब्लड प्रेशर का कारण जानने के लिए, और, क्या हाई ब्लड प्रेशर के कारण शरीर पर कुछ दुष्परिणाम हुए हैं, यह जानने के लिए कुछ और जांच की सलाह देते हैं।

पेशाब की जांच. रक्त की जांच. रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा, ईसीजी और कुछ मरीजों में आंखों की जांच की सलाह देते हैं।


हाइपरटेंशन उपचार – जीवनशैली में परिवर्तन

जीवनशैली और आहार में परिवर्तन हाइपरटेंशन के उपचार के सबसे महत्वपूर्ण अंग है।

स्वस्थ जीवन शैली और स्वास्थ्यवर्धक संतुलित आहार आपको हाइपरटेंशन से बचाता है अर्थात हाइपरटेंशन विकसित नहीं होने देता है और यदि आपका ब्लड प्रेशर बढ़ गया है तो उसे नियंत्रण में रखने में और उससे होने वाले दुष्परिणामों से बचने में आपकी मदद करता है।

इसलिए ब्लड प्रेशर के उपचार के समय यदि आप दवा ले रहे है तब भी खान पान और रहन सहन में बदलाव बहुत जरूरी है।

स्वास्थ्यवर्धक भोजन
संतुलित भोजन ले जो ह्रदय के लिए स्वास्थ्यवर्धक हो। फल, सब्जियां और साबुत अनाज का सेवन करें। डेयरी पदार्थ लो फैट के हो। सैचुरेटेड फैट वाले पदार्थ का सेवन ना करें।

हाइपरटेंशन के मरीजों को DASH diet (डैश डाइट) लेने की सलाह दी जाती है। DASH diet अर्थात Dietary Approaches to Stop Hypertension।

DASH diet के अनुसार साबुत अनाज, फल और सब्जियां, लो फैट डेरी पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है और सिचुएटेड फैट वाले पदार्थ को सीमित रखा जाता है।

नमक की मात्रा कम करें
नमक ब्लड प्रेशर को बढ़ा देता है। नमक शरीर में पानी को संग्रहित करता है और धमनियों पर विपरीत असर डालता है, इसलिए नमक हाइपरटेंशन का एक जोखिम कारक तत्व है।

भोजन में नमक का इस्तेमाल कम करे। प्रतिदिन 2.3 मिलीग्राम (2.3 mg) से कम नमक ले। डिब्बाबंद पदार्थों में नमक की मात्रा काफी अधिक होती है, इसलिए डिब्बाबंद पदार्थों का सेवन ना करें। पापड़, अचार, चिप्स, टोमेटो केचप जैसी चीजों में भी नमक अधिक होता है, इसलिए इन चीजों का भी सेवन कम करें।

वजन कम करें
यदि आपका वजन ज्यादा है तो उसे नियंत्रण में करने के लिए प्रयास करें।

अधिक वजन, ब्लड प्रेशर और शरीर के दूसरे अंगों के लिए काफी हानिकारक होता है। इसलिए नियमित व्यायाम, हाई फाइबर वाला भोजन, योग और आसन की सहायता से वजन को नियंत्रण में करें।

ब्लड प्रेशर के दुष्परिणामों से (जैसे की हार्टअटैक, स्ट्रोक, पैरालिसिस, किडनी फेलियर आदि से) बचने के लिए वजन कम करना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

नियमित व्यायाम
नियमित व्यायाम आपके ब्लड प्रेशर को कम करता है, तनाव दूर करता है, अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से बचाता है और वजन को भी नियंत्रण में रखने में सहायता करता है।

एक हफ्ते में ढाई से तीन घंटे व्यायाम का ध्येय रखे। रोज 30 मिनट तेज चलना भी सेहत के लिए फायदेमंद होता है।

धूम्रपान बंद करें
तंबाकू और धूम्रपान धमनियों को हानि पहुंचाते हैं और धमनियों में प्लाक जमा होने लगता है जिसे अथेरोस्क्लेरोसिस कहते हैं यह ह्रदय ब्रेन और किडनी के लिए बहुत ही हानिकारक है इसलिए धुम्रपान पूरी तरह से बंद करें

शराब का सेवन सीमित करें
अधिक शराब हाइपरटेंशन का एक जोखिम कारक तत्व है इसलिए यदि आप अधिक शराब का सेवन करते हैं तो इसे सीमित करें।

तनाव से बचे
तनाव के कारण शरीर में ऐसे रासायनिक पदार्थ तयार होते हैं जो ब्लड प्रेशर बढ़ा देते हैं और दूसरे अंगों को हानि पहुंचा सकते हैं। इसलिए ध्यान, योग और आसन से तनाव मुक्त रहें और 6 से 8 घंटे की नींद ले।


शरीर में ब्लड प्रेशर क्यों रहता है?

रक्तचाप वह दबाव है, जो हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ, रक्त वाहिकाओ की दीवारों पर पडता है।

  • रक्त वाहिका मतलब
    • ब्लड वेसल, blood vessel,
    • रक्तवाहिनी, धमनि,
    • रक्त-कोष्ठक, रुधिर-वाहिका

हमारा ह्रदय एक मिनट में, सामान्य स्थिति में 60 से 100 बार धड़कता है।

एक धड़कन अर्थात हृदय का एक बार संकुचित होना और शिथिल होना।

इस प्रकार हमारा ह्रदय, 1 मिनट में 60 से 100 बार संकुचित होता है, और शिथिल होता है।

ह्रदय जब संकुचित होता है, तब रक्त ह्रदय से बाहर जाता है, और ह्रदय जब शिथिल होता है, तब रक्त हृदय के अंदर आता है।

ह्रदय जब संकुचित होता है, तब रक्त, हृदय से निकलकर, धमनियों में प्रवेश करता है।

इस समय रक्त द्वारा, जो दबाव धमनियों पर डाला जाता है, उसे सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर यानी ऊपर का ब्लड प्रेशर कहते हैं।

ब्लड प्रेशर की पहली संख्या, इसी सिस्टोलिक प्रेशर को दर्शाती है।

120/80 में, 120 यह सिस्टोलिक प्रेशर है।

यह अधिक दबाव इसलिए जरूरी है, ताकि रक्त, ह्रदय से निकल कर, धमनियों से आगे बढ़ता हुआ, शरीर के हर एक अंग तक पहुंच सके।

ह्रदय जब शिथिल होता है, उस समय रक्त का जो दबाव धमनियों पर रहता है, उसे डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर अर्थात नीचे का ब्लड प्रेशर कहते हैं।

ब्लड प्रेशर की दूसरी संख्या, डायस्टोलिक प्रेशर दर्शाती है।

120/80 में, 80 यह डायस्टोलिक प्रेशर है।


उच्च रक्तचाप के कारण ह्रदय पर दबाव पड़ता है, धमनियों को नुकसान पहुंचता है, और कई गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं विकसित हो सकती है जैसे की हार्टअटैक, स्ट्रोक, पैरालिसिस, किडनी संबंधी समस्याएं आदि।