भोजन का पचना


शरीर का पोषण और शरीर से विकारो का बाहर निकल जाना दो क्रियाएँ तो है परन्तु वे दोनो एक दूसरे-से बहुत सम्बन्ध रखती है। शरीर का पोषण वहुत अंशों में उचित खान-पान से होता है।

  • जब खाया हुआ भोजन और पिये गये तरल पदार्थ (जैसे दूध, पानी, फल और भाजी के रस इत्यादि) अच्छी तरह पच जाते हैं
    • तभी उनसे शरीर के पोषण के लिए रक्त और विकार-रहित रस बनते है।

भोजन का जो हिस्सा शरीर में लग जाता है वह तो उसके काम आ जाता है, पर जो हिस्सा शरीर में नहीं लगता वह विकार है। वह शरीर के काम का नहीं है। उसे मलत्याग – पेशाब के रूप में शरीर के बाहर निकल जाना चाहिए। अगर वह पूरा पूरा नहीं निकलता तो शरीर के अन्दर सड़न पैदा होती है, जिससे सभी तरह की बीमारियाँ होती है।

  • भोजन का अच्छी तरह पचना,
  • शरीर में लगना
  • और उसके वचे हुए अंश का शरीर के वाहर निकल जाना,
  • भोजन के अच्छा होने और शरीर के तंदरुस्त रहने पर निर्भर है।

खाना, शरीर में भोजन का पचना, पचे भोजन का रस निकाला जाना और बचे हुए अंश का वाहर फेंक दिया जाना वहुत कुछ एक ही अवयव (अंग) का काम है। जिसे हम भोजन की नली (भोजन की प्रणाली, अन्न मार्ग, alimentary canal, digestive tract) कहते है।

भोजन की प्रणाली मुँह से शुरू होकर पाखाने के रास्ते तक जाती है । उसका आरम्भ मुँह है और अन्त गुदा (anus) है। दोनो के बीच में बहुत से अंग और कलपुर्जै है, जिनमें भोजन का पाचन और विकारो के निकाले जाने की क्रिया पूरी होती है।

ऐसा नही है कि भोजन पचाने का अंग कोई और है और विकार निकालने का अंग और – दोनो एक ही बड़े अंग के हिस्से हैं।

भोजन का पाचन सिर्फ पेट की थैली (stomach, आमाशय) मे न होकर मुँह से शुरू हो जाता है और छोटी आँतो तक जारी रहता है।

अगले पोस्ट में भोजन की पाचन क्रिया….