डायबिटीज – मधुमेह – Diabetes


डायबिटीज सारांश – summary

1. डायबिटीज क्या है?

डायबिटीज को, मधुमेह या शक्कर की बीमारी भी कहते है।

डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है, जिसमें, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है।

  • स्वस्थ व्यक्ति में, फास्टिंग अर्थात खाली पेट ब्लड शुगर लेवल,
    • 70 से 100 mg/dL और
  • भोजन के 2 घंटे बाद का ब्लड शुगर लेवल,
    • 100 से 140 mg/dl रहता है।

डायबिटीज में ब्लड शुगर लेवल, ऊपर दी गयी लेवल्स से अधिक हो जाता है।

2. डायबिटीज क्यों होता है?

इसके दो मुख्य कारण है –

  1. या तो शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है, या फिर,
  2. शरीर में इंसुलिन रहता है, किंतु
    • शरीर के सेल्स अर्थात कोशिकाएं, उसका उपयोग नहीं कर पाती है।

3. डायबिटीज के कुछ मुख्य लक्षण

मधुमेह के कुछ मुख्य लक्षण है –

  • बार-बार पेशाब आना,
  • अधिक प्यास और भूख लगना,
  • थकान, पैरों में झनझनाहट,
  • वजन कम होना आदि

4. डायबिटीज के दुष्परिणाम

रक्त में लंबे समय तक अधिक मात्रा में ग्लूकोज, शरीर के कई अंगों को, जैसे कि ह्रदय, किडनी, रक्त कोशिकाएं, आंख आदि को नुकसान पहुंचा सकता है।

5. डायबिटीज है, यह कैसे पता चलता है?

डायबिटीज का निदान, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा, विशेषतः फास्टिंग ब्लड शुगर और HbA1c नामक टेस्ट से किया जाता है।

6. डायबिटीज का उपचार

डायबिटीज के उपचार के लिए,

  • व्यायाम, वजन नियंत्रण,
  • खानपान की आदतों को बदलना,
  • तनाव से मुक्त रहने के लिए ध्यान,
  • दवाएं और इंसुलिन इंजेक्शन शामिल हैं।

7. डायबिटीज के मुख्य प्रकार

डायबिटीज के तीन मुख्य प्रकार है –

  • टाइप 1 डायबिटीज,
  • टाइप 2 डायबिटीज और
  • जेस्टेशनल डायबिटीज।

इनमे से, टाइप 2 डायबिटीज, सबसे आम प्रकार का डायबिटीज है।

100 में से 90 डायबिटीज के मरीजों को, टाइप 2 प्रकार का डायबिटीज होता है।

डायबिटीज के प्रकार इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इलाज में उपयोग में आने वाली, दवाइयां, इन्सुलिन इंजेक्शन और रोकथाम के उपाय जैसी चीजें, डायबिटीज के प्रकार पर आधारित होती है।


मधुमेह – डायबिटीज – Diabetes

Index – सूचि

डायबिटीज के इस आर्टिकल में हम देखेंगे –

  • डायबिटीज में क्या होता है?
  • डायबिटीज के लक्षण क्या है?
  • डायबिटीज को कैसे कंट्रोल करें?
    • डायबिटीज में व्यायाम क्यों महत्वपूर्ण है?
    • आहार नियंत्रण
    • डायबिटीज के लिए दवाइयां
    • इन्सुलिन इंजेक्शन
  • डायबिटीज है, यह कैसे पता चलता है?
  • डायबिटीज का निदान कैसे किया जाता है?
  • डायबिटीज के मुख्य प्रकार कौन से है?
  • डायबिटीज किसे हो सकता है?
    • जोखिम कारक तत्व –
    • Risk factors for diabetes
  • डायबिटीज की वजह से शरीर पर क्या हानिकारक प्रभाव पड़ता है?
    • डायबिटीज के दुष्परिणाम
    • Complications of Diabetes

ग्लूकोज और इन्सुलिन से सम्बंधित, कुछ बेसिक, लेकिन महत्वपूर्ण बातें

  • क्या, ग्लूकोज नामक चीज, शरीर के लिए हानिकारक है?
  • यह ग्लूकोज, शरीर में आता कहां से है?
  • ग्लूकोज रक्त से कोशिका में कैसे जाता है?
  • इन्सुलिन – एक हॉर्मोन – ग्लूकोज के दरवाजे की चाबी
  • इन्सुलिन और ब्लड ग्लूकोज का रिश्ता
  • References

डायबिटीज में क्या होता है?

What is Diabetes?

डायबिटीज एक क्रोनिक अर्थात दीर्घकालीन या लंबे समय तक रहने वाली, बीमारी है।

जिसमें, रक्त में ग्लूकोज यानी शक्कर की मात्रा, सामान्य स्तर से बढ़ जाती है।

इस स्थिति को, हाई ब्लड शुगर कहते हैं।

आगे हम देखेंगे, रक्त में ग्लूकोज बढ़ जाने की वजह से, कौन-कौन से लक्षण दिखाई देने लगते हैं।


डायबिटीज के लक्षण क्या है?

Symptoms of Diabetes

डायबिटीज के लक्षण, अलग-अलग मरीजों में, अलग-अलग हो सकते हैं।

इसके लक्षण, डायबिटीज की गंभीरता पर निर्भर करते हैं, अर्थात रक्त में शक्कर कितनी ज्यादा बढ़ी हुई है, और कितने वर्षों से यह बढ़ी हुई है।

डायबिटीज के कुछ प्रमुख लक्षण है –

  • अधिक प्यास लगना
  • अधिक भूख लगना
  • बार-बार पेशाब जाना
  • वजन कम होना
  • थकावट, थकान, कमज़ोरी महसूस होना
  • बार-बार इन्फेक्शन होना,
    • जैसे की चमड़ी या मसूड़ों के इंफेक्शन
  • घाव का जल्दी ना भरना
  • आंखों में धुंधलापन
  • हाथ पैरों में झनझनाहट महसूस होना या सुन्न हो जाना

मधुमेह के लक्षण कब दिखाई देना शुरू होते है?

टाइप 2 डायबिटीज में कुछ वर्षों के बाद

टाइप 2 डायबिटीज में, शुरुआत में कुछ वर्षों तक, लक्षण इतने मामूली होते हैं कि, मरीज को पता भी नहीं चलता कि, उसे डायबिटीज रोग हो गया है।

कभी कभी, किसी अन्य बीमारी के लिए, जब मरीज के रक्त की जांच की जाती है, तब पता चलता है कि, उसे डायबिटीज रोग भी है।

कुछ वर्षों के बाद, जब बढ़ी हुई शक्कर के कारण, शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचना शुरू हो जाता है, जैसे कि ह्रदय, आँख, नसें आदि, तब जाकर मरीज को पता चलता है कि, उसे डायबिटीज रोग हो गया है।

टाइप टू डायबिटीज ही सबसे आम प्रकार का है और लगभग 85 से 90 प्रतिशत मरीजों को, टाइप 2 ही रहता है।

टाइप 1 डायबिटीज में कुछ हफ़्तों में

लेकिन, टाइप 1 डायबिटीज में, लक्षण जल्दी दिखाई देने लगते हैं। जैसे कि, कुछ हफ्तों में ही, लक्षण शुरू हो जाते हैं।

इसलिए याद रखें –

इसलिए, यदि कोई जोखिम कारक तत्व है, जैसे की डायबिटीज की फॅमिली हिस्ट्री या अन्य, जो कि विस्तार से नीचे दिए गए हैं, तो बीच-बीच में रक्त की जांच करा लेनी चाहिए, जिससे कि डायबिटीज का, शुरुआती चरणों में ही पता लग जाए और उसे अच्छे से नियंत्रण किया जा सके।

आगे हम देखेंगे कि, डायबिटीज को कैसे नियंत्रण में रखा जाता है, जिससे कि ब्लड शुगर नॉर्मल रेंज में रहे, और शरीर के अंग सुरक्षित रहें।


डायबिटीज को कैसे कंट्रोल करें?

Treatment for Diabetes

क्या डायबिटीज पूरी तरह से ठीक हो सकता है?

वर्तमान में ऐसी दवा उपलब्ध नहीं है, जो डायबिटीज को पूरी तरह से ठीक कर दे।

लेकिन यदि डायबिटीज को नियंत्रण में रखा जाए, तो मरीज एक सामान्य जीवन जी सकता है।

कभी-कभी कुछ ऐसे विज्ञापन रहते हैं, जिनमें दिया गया रहता है कि, अमुक दवाई ले लीजिए, जिसकी वजह से, डायबिटीज पूरी तरह से ठीक हो जाएगा।

और मरीज खुद होकर वह दवा लेना शुरू कर देता है ।

लेकिन याद रखें, डायबिटीज एक गंभीर बीमारी है, इसलिए खुद होकर, इसका कोई भी इलाज शुरु ना करें।

डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही दवाई ले और उनके बताए गए निर्देशों का पालन करें।

यहां तक कि, व्यायाम और आहार के बारे में भी, डॉक्टर की सलाह जरूरी है।

डायबिटीज के उपचार के दो मुख्य लक्ष्य

डायबिटीज में दवाइयां या इन्सुलिन इंजेक्शन, दो मुख्य उद्देश्यों के लिए दी जाती है।

  1. पहला और महत्वपूर्ण उद्देश्य है, ब्लड में शुगर के स्तर को, नार्मल रेंज में रखना और
  2. दूसरा, डायबिटीज की वजह से, शरीर के अंगों पर जो दुष्परिणाम होते हैं, उन्हें कम करना।

मधमेह के उपचार में सबसे जरूरी क्या है?

इसलिए, उपचार में सबसे पहले आते हैं

  1. आहार पर नियंत्रण
  2. नियमित व्यायाम
  3. वजन पर नियंत्रण
  4. जीवनचर्या में बदलाव जैसे कि
    • शराब, धूम्रपान और तंबाकू का सेवन ना करना,
    • तनाव से मुक्त रहने के लिए ध्यान

डायट कंट्रोल और व्यायाम, डायबिटीज के इलाज में पहला और जरूरी कदम है।

और उसके बाद, यदि ब्लड शुगर कंट्रोल में नहीं आता है, तो फिर

  1. दवाइयां और
  2. इंसुलिन

डायबिटीज में परहेज और व्यायाम का महत्व

आहार पर नियंत्रण और नियमित व्यायाम का, डायबिटीज के हर स्टेज में महत्व है , कैसे?

1. प्रीडायबिटीज की स्टेज

यदि आपको प्रीडायबिटीज है, तो संतुलित भोजन और व्यायाम से, भविष्य में होने वाले डायबिटीज की संभावना को, कम कर सकते हैं यानी डायबिटीज से बच सकते हैं।

प्रीडायबिटीज मतलब डायबिटीज से पहले की स्थिति, वह स्थिति जिसमें भविष्य में डायबिटीज होने का ख़तरा रहता है।

प्रीडायबिटीज के बारें में विस्तार से डायबिटीज के निदान सेक्शन में दिया गया है।

2. डायबिटीज की शुरूआती स्टेज

यदि डायबिटीज हो गया हो, तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार, शुरुआत में, सिर्फ संतुलित आहार और एक्सरसाइज से भी, आप शुगर को नियंत्रण में रख सकते है।

3. दवाइयां और इंजेक्शन का इफ़ेक्ट

और यदि आप दवाइयां और इंजेक्शन ले रहे हैं, तो एक्सरसाइज और सही आहार, उनका इफेक्ट बढ़ा देता है।

इसलिए नियमित व्यायाम और आहार डायबिटीज के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।

और, यदि आप आहार पर नियंत्रण और व्यायाम नहीं कर रहे हो, तो डायबिटीज में किसी भी उपचार का फायदा नहीं होगा।


डायबिटीज में, व्यायाम से सम्बंधित कुछ मुख्य बातें

डायबिटीज के उपचार के लिए, व्यायाम बहुत ही महत्वपूर्ण है।

डायबिटीज के इस आर्टिकल में, बार-बार व्यायाम के लिए कहा गया है। तो व्यायाम मतलब, बॉडीबिल्डिंग वाली एक्सरसाइज बिल्कुल भी नहीं।

डायबिटीज के लिए, जो एक्सरसाइज फायदेमंद रहती है वह है, एरोबिक व्यायाम, जैसे सुबह शाम चलना, खेलना, तेज चलना, तैरना या हल्के-फुल्के व्यायाम आदि।

लेकिन, डायबिटीज होने की वजह से, व्यायाम से जुड़ा एक प्रॉब्लम है, जिसके बारे में, व्यायाम के फायदे के बाद में बताया गया है।

इसलिए, यदि डायबिटीज है तो, व्यायाम के बारे में, डॉक्टर से सलाह बहुत बहुत जरूरी है।

व्यायाम क्यों महत्वपूर्ण है?

डायबिटीज में, रक्त में जो शुगर रहती है, वह कोशिकाओं के अंदर नहीं जा पाती है।

और रक्त में शुगर की मात्रा बढ़ती जाती है, जिसकी वजह से शरीर के अंगों पर, बुरा प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है।

व्यायाम रक्त में शुगर की लेवल कम करता है

लेकिन जब हम व्यायाम करते हैं, तो कोशिकाओं पर स्थित, ग्लूकोज के लिए जो दरवाजे है, वे खुल जाते हैं, और रक्त में स्थित ग्लूकोज, कोशिकाओं के अंदर जाकर, ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है।

जिससे रक्त में ग्लूकोज की मात्रा, कम हो जाती है।

इन्सुलिन का भी यही काम है

इंसुलिन भी यही काम करता है।

इंसुलिन भी शरीर के सेल्स पर स्थित, ग्लूकोज के दरवाजों को खोल देता है, जिससे कि ब्लड ग्लूकोज सेल्स के अंदर चला जाता है और रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है।

व्यायाम डायबिटीज की दवा

इसलिए, व्यायाम इंसुलिन के जैसा ही काम करता है, या यूं कहें, व्यायाम, डायबिटीज की एक दवा के जैसा काम करता है।

डायबिटीज में व्यायाम का और एक बड़ा फायदा

साथ ही साथ, व्यायाम, इंसुलिन की कार्यक्षमता को भी बढ़ा देता है, जिसकी वजह से, कोशिकाओं पर इन्सुलिन अच्छी तरह से काम कर पाता है।

व्यायाम के लिए डॉक्टर से सलाह आवश्यक है

यदि आपको डायबिटीज है तो व्यायाम के बारे में डॉक्टर से सलाह जरूर लेना चाहिए की, कौन सा व्यायाम कर सकते है और कितनी देर तक कर सकते है।

क्योंकि यदि आपने अधिक देर तक व्यायाम किया तो, हाइपोग्लाइसीमिया का खतरा रहता है या कोई अन्य तकलीफ पैदा हो सकती है, इसलिए व्यायाम के संबंध में, डॉक्टर की सलाह बहुत जरूरी है।

हाइपोग्लाइसीमिया मतलब, रक्त ने शक्कर की मात्रा कम हो जाना।

हाइपोग्लाइसीमिया, एक गंभीर स्थति है और इसमें ब्लड ग्लूकोज को नॉर्मल करने के लिए, मरीज को तुरंत ही ऐसी चीज दी जाती है, जिसमें शुगर हो, जैसे कि फलों का रस, कैंडी, टॉफी आदि।


डायबिटीज में, आहार से सम्बंधित कुछ मुख्य बातें

आप भोजन में कौन से पदार्थ खाते हैं, पदार्थ कितनी मात्रा में है और कौन से समय भोजन कर रहे है, इन सभी बातों से, ब्लड शुगर की लेवल पर असर पड़ता है।

खाने की चीजों में, शुगर के बारे में, जानकारी रखें

इसलिए जरूरी है कि, आप अपने भोजन में जो पदार्थ ले रहे हो, उनके बारे में जानकारी रखें, जैसे कि – क्या उनमें बहुत ज्यादा शक्कर है, या ऐसी शक्कर है, जिसकी वजह से, रक्त में शक्कर की मात्रा, एकदम से बढ़ जाती है।

एकदम से ब्लड शुगर बढ़ाने वाली शक्कर

भोजन में कुछ कार्बोहाइड्रेट अर्थात शक्कर ऐसी होती है, जो खाने के बाद, कुछ ही देर में, रक्त में पहुंच जाती है।

जैसे कि चीनी, जो कि हम चाय, दूध में मिलाते है, या मिठाई के लिए इस्तेमाल करते हैं।

इस प्रकार का कार्बोहाइड्रेट, डायबिटीज के लिए बहुत हानिकारक है।

धीरे धीरे ब्लड में जाने वाली शुगर

और कुछ कार्बोहाइड्रेट, ऐसे होते हैं, जो धीरे-धीरे रक्त में पहुंचते हैं। जैसे की फलों में स्थित शुगर।

इस प्रकार की शक्कर, जो धीरे-धीरे पेट से रक्त में जाती है, इतनी हानिकारक नहीं होती, जितनी कि मिठास के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चीनी।

इसलिए,

जो मीठा, तुरंत शरीर में घुल जाता है, उसके सेवन से बचना चाहिए। जैसे शरबत, मीठी चाय, कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजें, डायबिटीज के रोगियों को नहीं पीना चाहिए।

जो मीठा धीरे धीरे जाकर के शरीर में घुलता है, जैसे फलों में स्थित शुगर, मुनक्का, खजूर, अंजीर वो ज्यादा नुकसान नहीं करता है।


डायबिटीज में, सेहतमंद आहार से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण सुझाव

जरूरत से ज्यादा ना खाएं और पौष्टिक आहार का सेवन करें।

मिठाईयां या मीठी चीजों से परहेज रखें, क्योंकि इनमें शक्कर की मात्रा अधिक होती है।

संपूर्ण दानेदार खाद्य पदार्थ, होल ग्रेन फूड का सेवन करें, जैसे कि भूरा चावल, ब्राउन राइस और दाल।

मैदे के बजाय आटे का इस्तेमाल करें।

हरी पत्तेदार सब्जियां, जैसे की पालक, पत्ता गोभी इत्यादि भोजन में जरूर लें।

पपीता, सेब, जामुन और अमरुद खा सकते है। जो खट्टे फल है वो थोड़ी मात्रा में खा सकते है। जो ज्यादा मीठे फल है, वो ना खाए।

ज्यादा चर्बीदार खाना, जैसे कि बर्गर, पिज्जा, आलू के चिप्स, वड़ापाव, पानीपुरी, गोलगप्पे और तले हुए खाद्य सामग्री या तले हुए पदार्थ जैसे कि समोसा और परांठा, इनका सेवन ना करें।

अपने डॉक्टर द्वारा सुझाए गए, आहार संबंधित नियमों का पालन करें


डायबिटीज के लिए दवाइयाँ

डायबिटीज के लिए कौन सी दवा और कितनी मात्रा में देना है, यह कुछ बातों पर निर्भर करता है, जैसे कि –

  • डायबिटीज कितना गंभीर है और कौन से प्रकार का है।
  • क्या कोई अन्य बीमारी भी मरीज को है, और
  • क्या डायबिटीज की वजह से, शरीर में कोई दुष्परिणाम आया है,
    • जैसे की दिल की या किडनी की बिमारी।

डायबिटीज के लिए दवा, कई वर्षों तक लेना पड़ता है, इसके लिए यह भी जरूरी है कि, दवा मरीज के लिए सुरक्षित होना चाहिए।

इसलिए, डायबिटीज में कोई भी दवा खुद होकर चालू ना करें और बिना डॉक्टर की सलाह के दवा की मात्रा ना बदले।

नीचे कुछ आमतौर पर उपचार के लिए, इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों के नाम और उनका मुख्य कार्य दिए गए है, लेकिन उससे पहले, दवा और इंसुलिन से संबंधित, एक महत्वपूर्ण बात।

याद रखें – दवा हो या इंसुलिन

कभी भी दवा की या इंसुलिन की मात्रा, बिना डॉक्टर की सलाह के, खुद होकर ना बदले या एडजस्ट ना करें।

क्योंकि यदि आपने दवाई या इन्सुलिन की मात्रा, खुद होकर बदल दी, तो उसकी वजह से, ब्लड शुगर लेवल सामान्य रेंज से, ज्यादा हो जाएगा या कम हो जाएगा।

  • ब्लड शुगर की नॉर्मल रेंज है –
    • 70 से 100 mg/dl

यदि शुगर लेवल ज्यादा हो गया, तो उसे उपचार से, फिर से कंट्रोल में कर लिया जा सकता है।

  • लेकिन, ज्यादा गंभीर बात है, ब्लड शुगर का कम हो जाना
    • 70 mg/dl से कम।

शुगर लेवल एकदम से कम हो जाना, जिसे हाइपोग्लाइसीमिया कहते हैं, बहुत गंभीर बात है, क्योंकि उसकी वजह से, एकदम से थकान, कमजोरी, छाती में धड़धड़, और चक्कर आना शुरू हो जाते हैं।

और यदि ज्यादा गंभीर हुआ, तो मरीज चलते-चलते गिर भी सकता है।

हाइपोग्लाइसीमिया को ठीक करने के लिए, मरीज को तुरंत ही ऐसी चीज दी जाती है, जिसमें शक्कर हो, जैसे कि फलों का रस, कैंडी, टॉफी आदि।

इसलिए, याद रखें, चिकित्सक की सलाह के बिना दवा या इन्सुलिन की मात्रा ना बदलें।


डायबिटीज के लिए कौन कौन सी दवाइयाँ दी जाती है?

डायबिटीज के दो मुख्य कारण है –

  1. इंसुलिन की कार्यक्षमता में कमी हो जाना
    • अर्थात शरीर में इंसुलिन रहता है,
    • किंतु कोशिकाएं इंसुलिन को रेस्पॉन्ड नहीं करती है,
  2. या शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है।

जिसकी वजह से, रक्त में शुगर लेवल बढ़ जाती है।

डायबिटीज की दवाइयां शरीर में कैसे मदद करती है?

इसलिए दवाइयां भी इन्हीं बिगड़ी हुई बातों को, नार्मल करने का प्रयास करती है, जैसे –

  1. कुछ दवाइयां इंसुलिन की संवेदनशीलता और कार्यक्षमता बढ़ाती है,
  2. तो कुछ दवाइयां इंसुलिन का स्तर बढ़ा देती है,
  3. और कुछ दवाइयां पेट में से ग्लूकोज का अवशोषण कम कर देती है।

नीचे, उपचार के लिए, आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली, दवाइयों के नाम दिए गए हैं –

1. कोशिकाओं पर इन्सुलिन की कार्यक्षमता बढ़ाने वाली दवाइयाँ

  • Metformin Tablet
    • मेटफॉर्मिन टैबलेट
  • Pioglitazone
  • Rosiglitazone

2. शरीर में इन्सुलिन का स्तर बढ़ाने वाली दवाइयाँ

  • Glibenclamide, Glipizide,
  • Gliclazide, Glimepiride
  • Repaglinide
  • Nateglinide

3. आँतों में से ग्लूकोज़ का अवशोषण कम करने वाली दवाइयाँ

  • Acarbose, Miglitol, Voglibose

डायबिटीज में इंसुलिन इंजेक्शन

डायबिटीज में, इंसुलिन इंजेक्शन का उपयोग, दो बातों पर निर्भर करता है –

  • एक डायबिटीज का प्रकार कौन सा है और
  • दूसरा डायबिटीज कितना गंभीर है।

टाइप 1 डायबिटीज में इंसुलिन इंजेक्शन

टाइप वन डायबिटीज में, शरीर में पैंक्रियास से, इंसुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता है, इसलिए, उपचार में शुरुआत से ही, इंसुलिन का इंजेक्शन देना पड़ता है।

टाइप 2 डायबिटीज में इंसुलिन इंजेक्शन

  • किन्तु, टाइप टू डायबिटीज में, पहले आहार नियंत्रण, व्यायाम और दवाइयों से ही मधुमेह का नियंत्रण हो जाता है।
  • किंतु यदि दवाइयों से भी, जब ग्लूकोस कंट्रोल में नहीं हो पाता है, तो ऐसी स्थिति में, इंसुलिन के इंजेक्शन शुरू करना पड़ता है।

टाइप 2 डायबिटीज में, कभी कभी कुछ दिनों के लिए इंसुलिन इंजेक्शन

  • कभी-कभी टाइप 2 मधुमेह में कुछ दिनों के लिए, इंसुलिन देना पड़ता है जैसे कि सर्जरी के समय, गंभीर इंफेक्शन, गंभीर बिमारी – हार्ट अटैक, पैरालिसिस आदि।
  • और जब यह गंभीर बीमारी, रोग और इंफेक्शन ठीक हो जाते हैं, तो फिर इंसुलिन इंजेक्शन बंद करके, फिर से दवाइयां शुरू कर दी जाती है।

इन्सुलिन इजेक्शन के टाइप

  • Short acting (regular insulin),
  • Rapid acting insulin,
  • Intermediate acting और
  • Long acting insulin

डायबिटीज है, यह कैसे पता चलता है?

रक्त की जांच से डायबिटीज रोग का पता चल जाता है।

निचे दी गयी स्थितियों में डॉक्टर आपसे रक्त की जांच करवाने के लिए कहते है –

  1. यदि आपको ऊपर दिए गए लक्षणों में से कुछ दिखाई देते हो या फिर
  2. यदि कोई जोखिम कारक तत्व मौजूद हो, जैसे की, डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री, और किसी अन्य रोग के लिए, आप डॉक्टर के पास जाते हो और डॉक्टर को यदि संदेह होता है कि, आपको डायबिटीज हो सकता है।

डायबिटीज के लिए दो मुख्य टेस्ट है –

  1. ब्लड शुगर टेस्ट और
  2. ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट (HbA1c)

डायबिटीज के डायग्नोसिस के लिए, ब्लड शुगर टेस्ट में मुख्यतः फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट और ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट किये जाते है।

यदि पहली बार में, रक्त में शुगर की मात्रा अधिक आती है, तो डॉक्टर निदान की पुष्टि के लिए, टेस्ट को फिर से करने के लिए कहते हैं।

पहले इन टेस्ट के महत्वपूर्ण नंबर्स दिए है, जो की लेबोरेटरी के रिपोर्ट में आते है और उसके बाद टेस्ट के बारे में विस्तार से दिया गया है।

स्वस्थ व्यक्ति का ब्लड शुगर

  • नॉर्मल (सामान्य) ब्लड शुगर लेवल –
    • 70 से 100 mg/dL

फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज टेस्ट –

मधुमेह के निदान के लिए सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट

खाली पेट शुगर टेस्ट

  • सामान्य – 100 mg/dl से कम
  • डायबिटीज – 126 mg/dl से ज्यादा

पोस्टप्रांडियल (भोजन के बाद) ब्लड ग्लूकोज –

भोजन के 2 घंटे बाद ब्लड शुगर टेस्ट

  • सामान्य – 140 mg/dl से कम
  • डायबिटीज – 200 mg/dl से ज्यादा

रैंडम ब्लड ग्लूकोज टेस्ट –

ब्लड शुगर टेस्ट – किसी भी समय –

  • सामान्य – 140 mg/dl से कम
  • डायबिटीज – 200 mg/dl से ज्यादा

ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट (HbA1c)

एचबीए 1 सी जांच

  • सामान्य – 4 से 5.6
  • डायबिटीज – 6.5 से अधिक
  • अब निचे हम डायबिटीज के इन टेस्ट के बारें में,
  • कुछ विस्तार से देखेंगे।

डायबिटीज का निदान कैसे किया जाता है?

रक्त में ग्लूकोज की जांच

डायबिटीज़ का निदान, आसानी से किया जा सकता है।

स्वस्थ व्यक्ति में, भोजन से पहले, ब्लड शुगर का लेवल, 70 से 100 mg/dl रहता है।

खाने के बाद, भोजन से कार्बोहायड्रेट रक्त में जाता है, इसलिए यह लेवल, 120-140 mg/dl हो जाता है।

और फिर धीरे-धीरे कम होता जाता है, और कुछ घंटों के बाद में, फिर से 100 के लेवल से नीचे आ जाता है, अर्थात सामान्य हो जाता है।

परंतु डायबिटीज हो जाने पर,यह ब्लड शुगर का लेवल, खाने के बाद, सामन्य नहीं हो पाता है और बढ़ा हुआ ही रहता है।

इसलिए, रक्त में ग्लूकोज के लेवल की जांच कर, यह पता लग जाता है की, मरीज को डायबिटीज़ है या नही।

रक्त में शुगर के लेवल की जांच, किस समय की जाती है, उसके आधार पर, इसके नाम इस प्रकार है –

  1. फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज
    1. Fasting blood glucose
    2. खाली पेट, भूखे पेट
  2. पोस्टप्रांडियल ब्लड ग्लूकोज
    1. Postprandial blood glucose
    2. भोजन के बाद
  3. रैंडम ब्लड ग्लूकोज
    1. Random blood glucose
    2. किसी भी समय
  4. ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट
    1. Glucose tolerance test
  • इनमे से फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट,
  • सबसे मुख्य है और
  • डायबिटीज के निदान के लिए,
  • यह जरूर की जाती है।

एक महत्वपूर्ण बात – mg/dl

  • ब्लड शुगर की रीडिंग
  • mg/dl के फॉर्म में लिखी जाती है, अर्थात
  • मिलीग्राम पर डेसीलीटर।
  • जैसे नार्मल ब्लड शुगर
  • 70 से 100 mg/dL (3.9 and 5.6 mmol/L)
  • mg/dl मतलब मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर
  • डेसीलीटर मतलब 100 ml होता है।

फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज टेस्ट

  • तीन महत्वपूर्ण नंबर्स –
  • 100, 100 से 126, 126 से ज्यादा
  • फास्टिंग का मतलब होता है, खाली पेट या भूखे पेट

इसलिए, फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट के लिए, मरीज का रक्त, उसके भोजन के 8 घंटे के बाद, या सुबह नाश्ते से पहले, खाली पेट लिया जाता है।

स्वस्थ व्यक्ति में फास्टिंग ब्लड शुगर की लेवल 100 mg/dl (मिलीग्राम प्रति डीएल) या उससे कम होना चाहिए।

यदि यह लेवल 126 mg/dl से अधिक आती है तो ब्लड टेस्ट दूसरे दिन फिर से किया जाता है और यदि यह फिर से 126 mg/dl से अधिक आती है तो, यह मधुमेह होने का संकेत है।

और यदि रीडिंग 120 से 126 के बीच है तो क्या?

यदि शुगर लेवल, 120 से 126 mg/dl के बीच है, तो उसे प्री-डायबिटीज कहते है।

प्री-डायबिटीज के बारे में बाद में विस्तार से देखेंगे, लेकिन संक्षेप में –

प्री-डायबिटीज मतलब डायबिटीज से पहले, अर्थात मरीज़ को निकट भविष्य में, डायबिटीज होने की संभावना है।

इसलिए मरीज़ को, अपने जीवनशैली, खान पान में बदलाव करना पड़ता है, जिससे की आगे, डायबिटीज के खतरे को कम किया जा सके।

साथ ही साथ, व्यायाम, योग और ध्यान भी, व्यक्ति को डायबिटीज के खतरे को, कम करने में मदद कर सकते है।


पोस्टप्रांडियल ब्लड ग्लूकोज

  • तीन महत्वपूर्ण नंबर्स –
  • 140, 140 से 200, 200 से ज्यादा

पोस्टप्रांडियल मतलब भोजन के बाद।

पोस्टप्रांडियल ब्लड शुगर टेस्ट में, रक्त की जांच, भोजन के दो घंटे के बाद की जाती है।

सामान्य स्थिति में यह रीडिंग 140 mg/dl से कम रहती है।

यदि पोस्टप्रांडियल ब्लडशुगर की लेवल 200 mg/dl से अधिक है, तो यह डायबिटीज का संकेत है।

और यदि रीडिंग 140 से 200 के बीच है तो क्या?

यदि शुगर लेवल, 140 से 200 mg/dl के बीच है, तो उसे प्री-डायबिटीज कहते है, जिसके बारे में हमने फास्टिंग टेस्ट में संक्षेप में देखा।


रैंडम ब्लड ग्लूकोज टेस्ट

  • तीन महत्वपूर्ण नंबर्स –
  • 140, 140 से 200, 200 से ज्यादा

रैंडम का अर्थ है किसी भी समय।

रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट, दिन में किसी भी समय की जाती है।

रैंडम ब्लड शुगर टेस्ट की रीडिंग भी पोस्टप्रांडियल ब्लड शुगर टेस्ट के जितनी ही होती है।


ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट

डायबिटीज के निदान के लिए, यह एक महत्वपूर्ण टेस्ट है।

यदि दूसरे टेस्ट में डायग्नोसिस में कन्फ्यूजन आ रहा हो, तो इस टेस्ट को किया जाता है।

इस टेस्ट के लिए पहले, मरीज का फास्टिंग ब्लड ग्लूकोज किया जाता है, मतलब भूखे पेट ब्लड शुगर टेस्ट

उसके बाद, उसे 300ml पानी में, एक गिलास पानी में, 75 ग्राम ग्लूकोज घोलकर पिलाया जाता है।

ग्लूकोस पीने के 2 घंटे बाद, रक्त में फिर से, ग्लूकोज की मात्रा की जांच की जाती है।

इस टेस्ट में दो रीडिंग्स मिलती है –

  1. उनमे से पहली रीडिंग,
    • फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट के जितनी होनी चाहिए,
  2. और दूसरी रीडिंग,
    • पोस्टप्रांडियल ब्लड ग्लूकोज टेस्ट के जितनी होनी चाहिए।

दोनों रीडिंग्स के बारे में ऊपर फास्टिंग और पोस्टप्रांडियल में दिया गया है।


ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन टेस्ट (HbA1c)

HbA1c – एचबीए 1 सी, एक ऐसी टेस्ट है, जो पिछले 3 महीनों की अवधि में, औसत ब्लड शुगर के स्तर का अनुमान दर्शाती है।

यह टेस्ट उपचार के बाद, ब्लड शुगर कितना कंट्रोल में है, इसकी जानकारी के लिए भी काफी उपयोगी है।

क्योंकि एचबीए 1 सी जांच, पिछले 2-3 महीनों में, औसत ब्लड ग्लूकोज के स्तर का, अच्छा संकेत देती है।

इस टेस्ट को, दिन के किसी भी समय किया जा सकता है, अर्थात इस जांच के लिए, खाली पेट रहने की जरूरत नहीं है।

HbA1C की रीडिंग्स कितनी होनी चाहिए?

  • सामान्य लेवल – 4 से 5.6,
  • प्री-डायबिटीज – 5.7 से 6.4 के बीच
    • अर्थात निकट भविष्य में डायबिटीज होने का खतरा है
  • डायबिटीज – 6.5 से अधिक

लक्षणों में हमने, टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज शब्दों का, उपयोग किया है तो यह क्या है?

टाइप वन और टाइप टू डायबिटीज, डायबिटीज के दो प्रकार है।

डायबिटीज के उपचार से पहले, नीचे डायबिटीज के प्रकार संक्षेप में दिए गए हैं। क्योंकि डायबिटीज के लिए दवाई या इंजेक्शन, डायबिटीज के प्रकार पर निर्भर करता है।


डायबिटीज के मुख्य प्रकार कौन से है?

Types of Diabetes

डायबिटीज के तीन मुख्य प्रकार है –

  • टाइप 1 डायबिटीज
  • टाइप 2 डायबिटीज और
  • जेस्टेशनल डायबिटीज
  • टाइप 2 डायबिटीज,
  • सबसे आम प्रकार का डायबिटीज है।
    • अधिकांश डायबिटीज के मरीज,
    • टाइप टू डायबिटीज ही होते हैं।

टाइप 1 डायबिटीज – Type 1 Diabetes – IDDM

टाइप वन डायबिटीज में, पैंक्रियास ग्रंथि, इन्सुलिन हॉर्मोन का, उत्पादन नहीं कर पाती है। जिससे शरीर में इन्सुलिन की, कमी हो जाती है।

टाइप वन डायबिटीज, किसी भी उम्र में हो सकता है, किंतु यह ज्यादातर, बच्चों तथा युवाओं में पाया जाता है।

टाइप 2 डायबिटीज – Type 2 Diabetes – NIDDM

टाइप टू डायबिटीज में, शरीर में इंसुलिन तो रहता है, किंतु कोशिकाएं, उसका उपयोग नहीं कर पाती है।

किंतु बाद में कुछ वर्षों के बाद, पैंक्रियास से इंसुलिन का उत्पादन भी, कम होने लगता है।

टाइप 2 मधुमेह, किसी भी उम्र में, विकसित हो सकता है, किन्तु, यह 40 से अधिक उम्र के लोगों में, अधिक पाया जाता है।


गर्भकालीन मधुमेह – जेस्टेशनल डायबिटीज – Gestational Diabetes –

गर्भावस्था के दौरान होने वाले जेस्टेशनल डायबिटीज में, माता इतनी पर्याप्त मात्रा में, इन्सुलिन पैदा नही कर पाती है, जिससे माता तथा शिशु, दोनो की आवश्यकता की पूर्ति हो सके।


डायबिटीज किसे हो सकता है? – जोखिम कारक तत्व

Risk factors for diabetes

रिस्क फैक्टर्स या जोखिम कारक तत्व अर्थात वह बातें, जिनकी वजह से, डायबिटीज होने की संभावना बढ़ जाती है, जैसे की –

डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री

यदि परिवार में किसी नजदीकी रिश्तेदार को, जैसे कि माता पिता या भाई बहन को, डायबिटीज है, तो आपको डायबिटीज होने की संभावना, अधिक हो जाती है।

मोटापा

जैसा कि हमने देखा, शरीर के प्रत्येक कोशिका पर, ग्लूकोस के लिए दरवाजा रहता है और उसकी चाबी इंसुलिन है।

किंतु मोटापे के कारण, शरीर की कोशिकाओं की दीवारों में, बदलाव आ जाता है और ग्लूकोस के दरवाजे में खराबी आ जाती है, जिसकी वजह से इंसुलिन काम नहीं कर पाता है।

कुछ और स्थितियां, जिनकी वजह से,मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है

  • शारीरिक श्रम का अभाव
  • हाई ब्लड प्रेशर
  • अधिक कोलेस्ट्रॉल
  • महिलाओं में जेस्टेशनल डायबिटीज की हिस्ट्री
  • महिलाओं में पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम

डायबिटीज की वजह से शरीर पर क्या हानिकारक प्रभाव पड़ता है?

Complications of Diabetes

रक्त में अधिक मात्रा में ग्लूकोज, शरीर के कई अंगों को, जैसे की ह्रदय, किडनी, रक्त कोशिकाएं, आँख, नसें आदि को नुकसान पहुंचा सकता है और कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।

मधुमेह से संबंधित ये जटिलताएं, धीरे धीरे कई वर्षों में विकसित होती है।

डायबिटीज के प्रारंभिक चरणों में, लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, या बहुत ही हलके रहते हैं।

इसलिए, कुछ लोग, डायबिटीज के निदान होने के बाद भी, दवाइयां ठीक तरह से नहीं लेते हैं।

कुछ लोगों को लगता है कि, लक्षण तो दिखाई नहीं दे रहे हैं, इसलिए वे डॉक्टर की दी हुई दवाइयां, समय पर नहीं लेते, अपने आहार पर नियंत्रण नहीं रखते और व्यायाम भी नहीं करते हैं।

अर्थात वे रक्त में शुगर के लेवल को, नियंत्रण में रखने का प्रयास नहीं करते हैं।

भले ही शुरुआत के कुछ वर्षों में, डायबिटीज के लक्षण दिखाई ना दे, किंतु रक्त में बढ़ा हुआ ग्लूकोज, शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को, नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

और बाद में, कुछ वर्षों के बाद, कई गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती है।

रक्त में शुगर की मात्रा जितनी अधिक होगी, और जितने वर्षों तक वह बढ़ी रहेगी, डायबिटीज की जटिलताओं का अर्थात दुष्परिणामों का खतरा, उतना ही अधिक होगा।

डायबिटीज से होने वाले कॉम्प्लीकेशन्स

  • हृदय रोग – डायबिटीज की वजह से, ह्रदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है, जैसे कि, हार्ट अटैक, एथेरोस्क्लेरोसिस, स्ट्रोक, एनजाइना आदि
  • नेफ्रोपैथी – किडनी की अर्थात गुर्दों को क्षति
  • न्यूरोपैथी – नर्व का क्षतिग्रस्त हो जाना
  • रेटिनोपैथी – आँख के रेटिना को क्षति, आँख के परदे को नुकसान
  • पैर के रक्त संचारण में कमी
  • पैर की क्षति, जैसे संक्रमण और
  • घाव जो जल्दी ठीक नहीं होते हैं
  • बहरापन
  • डिप्रेशन

ग्लूकोज और इन्सुलिन से सम्बंधित कुछ बेसिक लेकिन महत्वपूर्ण बातें

डायबिटीज में सबसे बड़ा प्रॉब्लम है, रक्त में शुगर का बढ़ जाना।

जिसकी वजह से, शरीर के लगभग सभी अंगों को, नुकसान पहुंचना शुरू हो जाता है, और कुछ वर्षों में, कई गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।


तो क्या, ग्लूकोज नामक चीज, शरीर के लिए हानिकारक है?

नहीं, ग्लूकोज़ यदि नार्मल रेंज में रहे तो शरीर के लिए हानिकारक नहीं बल्कि एक आवश्यक पोषक तत्व है।

ग्लूकोज शरीर के लिए क्यों आवश्यक है?

ग्लूकोज हमारे शरीर में, एनर्जी का एक मुख्य स्रोत है।

हमारा शरीर, अलग-अलग अंगों का एक समूह है।

हर एक अंग, लाखों सेल्स (कोशिकाओं) से बना रहता है, अर्थात हमारा शरीर, लाखों करोड़ों कोशिकाओं से बना है, जिनमें निरंतर कार्य चलता रहता है।

ग्लूकोज – ऊर्जा का स्त्रोत – शरीर का ईंधन

और उन कार्यों को करने के लिए, एनर्जी की जरूरत पड़ती है।

ग्लूकोज, शरीर की इसी जरूरत को, पूरा करता है, अर्थात ग्लूकोस, एनर्जी का एक मुख्य सोर्स है। दुसरा सोर्स है फैट मतलब वसा

ग्लूकोज है शरीर के लिए ईंधन

जैसे कार को चलने के लिए, पेट्रोल या डीजल की जरूरत पड़ती है, वैसा ही काम शरीर में, ग्लूकोज का होता है, यानी ग्लूकोज शरीर का ईंधन है।

लेकिन सिमित मात्रा में –

लेकिन, रक्त में ग्लूकोज की मात्रा, एक नॉर्मल रेंज में रहना चाहिए, जो कि है,

  • 70 and 100 mg/dL (3.9 and 5.6 mmol/L)
    • mg/dl मतलब मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर
    • डेसीलीटर मतलब 100 ml

यदि ग्लूकोज, रक्त में, इस लेवल से ऊपर रहता है, तो शरीर के कई अंगों को, जैसे कि ह्रदय, किडनी, रक्त कोशिकाएं, या यूं कहें लगभग पूरे शरीर को, हानि पहुंचाना शुरू कर देता है।


यह ग्लूकोज, शरीर में आता कहां से है?

कार्बोहायड्रेट से ग्लूकोज

ग्लूकोज, कार्बोहाइड्रेट से तैयार होता है, जो कि भोजन का एक तत्व है।

हमारे भोजन में जो मीठा तत्व रहता है, वह कार्बोहायड्रेट है।

जब हम भोजन करते हैं तो, कार्बोहाइड्रेट, पेट की आँतों में, ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है और फिर रक्त के द्वारा, शरीर के लाखों करोड़ों कोशिकाओं तक पहुंचता है।

ग्लूकोज कोशिकाओं के अंदर

रक्त से यह ग्लूकोज, कोशिकाओं के अंदर जाता है, और कोशिकाएं उस ग्लूकोज का उपयोग, ऊर्जा निर्माण के लिए करती है।

यह ऊर्जा, अंगों के कार्यों के लिए जरूरी है।

अब प्रश्न यह उठता है कि, यदि ग्लूकोस, रक्त से कोशिकाओं में जाकर, नष्ट हो जाता है, तो फिर, किसी किसी व्यक्ति में, यह रक्त में क्यों बढ़ जाता है, जिसकी वजह से, डायबिटीज जैसी बीमारी हो जाती है।

इसके लिए यह समझना जरूरी है कि, ग्लूकोज, रक्त से, कोशिका में कैसे जाता है, और उसका इंसुलिन से क्या संबंध है।


ग्लूकोज रक्त से कोशिका में कैसे जाता है?

ग्लूकोज के लिए दरवाज़ा

कोशिकाओं की दीवार पर ग्लूकोस को, अंदर आने के लिए एक दरवाजा रहता है।

ग्लूकोज इसी दरवाजे से, कोशिकाओं के अंदर जा सकता है।

दरवाज़े की चाबी – इन्सुलिन

लेकिन यह दरवाजा, बंद स्थिति में रहता है। और उस दरवाजे के ताले की चाबी, इंसुलिन नामक एक हार्मोन के पास रहती है।

या यूं कहें कि, इंसुलिन एक दरबान के जैसा काम करता है, जोकि ग्लूकोस के लिए दरवाजा खोलता है।

यदि इन्सुलिन कम हो जाए तो –

  • यदि शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाए, तो ग्लूकोस के लिए, यह दरवाजा बंद ही रहेगा, और ग्लूकोज रक्त में ही रह जाएगा। 

यदि दरवाजा खराब हो जाए तो –

या फिर, कोशिकाओं पर स्थित, ग्लूकोज के दरवाजों के ताले में, यदि खराबी आ जाए, तो, इंसुलिन दरवाजे को नहीं खोल पाएगा और ग्लूकोज रक्त में ही रह जाएगा।

डायबिटीज इन्हीं दोनों में से, किसी एक कारण की वजह से होता है।

यही दो कारण है जिनपर, मधुमेह के दो मुख्य प्रकार आधारित है और डायबिटीज का उपचार भी इन्ही पर आधारित है।

अब यह इंसुलिन क्या है, और यह शरीर में कहां से आता है?


इन्सुलिन – एक हॉर्मोन – ग्लूकोज के दरवाजे की चाबी

इंसुलिन हमारे शरीर में, पैंक्रियाज नामक ग्रंथि से उत्पन्न होता है, जो कि पेट में, स्टमक के पीछे रहती है।

पैंक्रियास से इंसुलिन निकलकर, रक्त के जरिए, शरीर के प्रत्येक कोशिका तक पहुंचता है, और वहां ग्लूकोस के लिए दरवाजा खोलता है, जिससे, ग्लूकोज कोशिकाओं के अंदर जा सकता है।

अब हम देखेंगे की, ग्लूकोज और इंसुलिन का रिश्ता कैसा है और इन्सुलिन कैसे रक्त में ग्लूकोज़ की लेवल को, नियंत्रण में रखता है।


इन्सुलिन और ग्लूकोज

भोजन के बाद कार्बोहायड्रेट से ग्लूकोज

जब हम भोजन करते हैं, तो रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है,

जैसा की हमने देखा, हमारे भोजन में कार्बोहायड्रेट रहता है और पेट की आँतें, कार्बोहायड्रेट को ग्लूकोज में बदल देती है और रक्त में भेज देती है।

पैंक्रियास और ग्लूकोज की लेवल का रिश्ता

तो कुछ भी खाने के पश्चात, रक्त में ग्लूकोज बढ़ जाता है, और जैसे ही, पैंक्रियास को यह पता चलता है की, रक्त में ग्लूकोज बढ़ रहा है, रक्त में ग्लूकोज का स्तर, 100 mg/dl से ऊपर जा रहा है, जैसे की 120, 130, 140, 150 ……., वह, (मतलब पैंक्रियास), इंसुलिन का उत्पादन बढ़ा देता है और उस इन्सुलिन को रक्त में छोड़ देता है।

इन्सुलिन, ग्लूकोज के लिए दरवाज़े खोलता है

इंसुलिन रक्त के जरिए, शरीर के लाखों-करोड़ों कोशिकाओं तक पहुंचता है, और उन कोशिकाओं पर स्थित, ग्लूकोस के दरवाज़ों को खोल देता है।

जिससे, रक्त का ग्लूकोज, कोशिकाओं में चला जाता है और रक्त में ग्लूकोज की मात्रा कम हो जाती है। अर्थात 100 mg/dl से नीचे, जो की स्वस्थ लेवल है।

समस्याग्रस्त स्थितियां

अब फिर से, उन्हीं दो स्थितियों के बारे में –

  • यदि पैंक्रियास से, इंसुलिन का उत्पादन कम हो जाए
  • या
  • कोशिकाओं पर स्थित ग्लूकोज के दरवाजे, खराब हो जाए तो क्या होगा?

दोनों ही स्थितियों में, ग्लूकोज रक्त में रह जाएगा, और जैसा की हमने देखा, रक्त में अधिक मात्रा में ग्लूकोज, शरीर के अंगों को नुकसान पहुँचाना शुरू कर देगा।

ऐसा क्यों होता है और कब हो सकता है?

यह दोनों स्थितियां क्यों उत्पन्न होती है, किन कारणों से उत्पन्न होती है, और कुछ व्यक्तियों में ही, यह समस्या क्यों आती है,

यह हम बाद में, डायबिटीज के कारण और डायबिटीज के जोखिमकारक तत्व के भाग में, विस्तार से देखेंगे।



References

  • Prevalence – Williams textbook of endocrinology (12th ed.). Elsevier/Saunders. 2011. pp. 1371–1435. ISBN 978-1-4377-0324-5.
  • Prevalence – Vos T, Flaxman AD, Naghavi M, et al. Years lived with disability (YLDs) for 1160 sequelae of 289 diseases and injuries 1990-2010: a systematic analysis for the Global Burden of Disease Study 2010 [published correction appears in Lancet. 2013 Feb 23;381(9867):628. AlMazroa, Mohammad A [added]; Memish, Ziad A [added]]. Lancet. 2012;380(9859):2163-2196. doi:10.1016/S0140-6736(12)61729-2