- हमारे शरीर में,
- सेल्स की निरंतर टूट-फूट होती रहती है।
- नए सेल्स बनते रहते हैं,
- जो पुराने सेल्स की जगह लेते हैं।
- पुराने कोशिकाओं का नष्ट होना और
- नई कोशिकाओं का बनना,
- निरंतर जारी रहता है।
- सेल्स के नष्ट होने और
- बनने की क्रिया में,
- कई तरह के हानिकारक पदार्थ बनते हैं।
- इन हानिकारक पदार्थों का,
- शरीर के बाहर निकल जाना आवश्यक है,
- नहीं तो शरीर में कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है।
- ये हानिकारक पदार्थ,
- फेफड़े, गुर्दे, लीवर और स्किन के रास्ते,
- शरीर के बाहर निकल जाते हैं।
- पानी की भाप और कार्बन डाय आक्साइड गैस,
- जैसी जो हानिकारक चीजें हैं,
- वो फेफडों के सहारे शरीर के बाहर निकाली जाती है।
- और कुछ हानिकारक पदार्थ जैसे कि,
- यूरिया, यूरिक एसिड आदि,
- गुर्दो के सहारे,
- पेशाब के रूप में,
- शरीर के बाहर निकाल दिए जाते हैं।
Kidney – गुर्दा
- जिस अंग में पेशाब बनता है,
- उसे गुर्दा कहते हैं।
- शरीर में दो गुर्दे रहते हैं –
- एक दाहिना और एक बाया।
- यह पेट में पीछे के भाग में,
- रीढ़ की दाहिनी और बाई और रहते है।
- गुर्दों के चारों और,
- खासकर उनके पीछे चर्बी रहती है।
- दायां गुर्दा, बाएं गुर्दे की तुलना में,
- थोड़ा सा निचे रहता है।
- हर एक गुर्दे के ऊपरी सिरे पर,
- एक छोटी सी ग्रंथि रहती है,
- जिसे एड्रेनल ग्लैंड कहते हैं।
- गुर्दे का आकार,
- सेम के बीज की तरह होता है।
गुर्दे का साइज कितना होता है?
- किडनी की औसत
- लंबाई –
- 12 सेमी
- 4 इंच
- चौड़ाई
- 6 सेमी
- 2.5 इंच और
- मोटाई
- 3 सेमी
- 1 इंच
- होती है।
- प्रत्येक गुर्दे पर,
- एक रेशेदार झिल्ली का कवर रहता है,
- जिसे कैप्सूल कहते है।
- नेफ्रॉन,
- गुर्दे की संरचनात्मक और
- कार्यात्मक इकाइ हैं।
- एक गुर्दा लगभग,
- 10 लाख नेफ्रॉन से बना रहता है।
- हर मिनट, गुर्दे से लगभग,
- 1.25 लीटर रक्त प्रवाहित होता है।
- अर्थात
- हर मिनट में,
- गुर्दे लगभग सवा लीटर खून की,
- सफाई करते है।
- सेम के बीज की ही तरह,
- गुर्दे की दोनों तरफ की पीठें उभरी होती है और
- साथ ही उसका बाहरी किनारा भी उभरा होता है।
- उसका भीतरी किनारा,
- जो रीढ़ की तरफ रहता है,
- बीच में दबा होता है।
- इसी दबे हुए हिस्से पर,
- गुर्दे की धमनी उसके अंदर प्रवेश करती है, और
- यहीं पर उसकी शिरा बाहर आती है।
Ureter – मूत्रवाहिनी – मूत्रनली
- किडनी के उसी दबे हुए हिस्से से,
- पेशाब की नली (ureter) निकलती है और
- नीचे जाकर मूत्राशय (bladder) से जुड़ जाती है।
- प्रत्येक किडनी से बनने वाला यूरिन,
- मूत्रवाहिनी के माध्यम से,
- मूत्राशय तक पहुँचता है।
Urinary Bladder – मूत्राशय
- मूत्राशय पेशियों की बनी एक थैली है।
- वह पेट के निचे के हिस्से में रहती है।
- इसी थैली में पेशाब,
- गुर्दों से पेशाब की दोनों नालियों द्वारा आकर,
- इकट्ठा होता है।
- मूत्रवाहिनी से मूत्राशय में,
- प्रवेश करने वाला यूरिन,
- धीरे-धीरे मूत्राशय के अंदर के,
- खोखले स्थान को भर देता है।
- जब यह थैली पेशाब से भर जाती है,
- तो सिकुड़ती है और पेशाब,
- urethra के रास्ते बाहर निकलता है।
- जहां से urethra शुरू होता है,
- वहां मूत्राशय की दीवार का मांस सिकुड़ कर,
- क्षेत्र को बंद किए हुए रहता है।
- जब पेशाब करने की आवश्यकता होती है,
- तो मांस ढीला पड़ जाता है और
- रास्ता खुल जाता है,
- तभी मूत्राशय से निकलकर पेशाब,
- पेशाब के रास्ते में आता है और
- बाहर निकल जाता है।
Urine – पेशाब
- पेशाब में बहुत ज्यादा हिस्सा पानी और
- कुछ अंश रासायनिक पदार्थों का रहता है।
- ये पदार्थ उस पानी में घुले रहते हैं।
- फिर इनमें कुछ हिस्सा यूरिया और
- यूरिक एसिड नामक,
- दो नाइट्रोजन मिश्रित पदार्थों का होता है।
- तंदुरुस्ती की हालत में पेशाब में,
- ना तो शक्कर रहती है, और
- ना ही प्रोटीन।
- पर कुछ खास बीमारियों की हालत में,
- यह चीजें थोड़ी बहुत मात्रा में पाई जाती है।
- पेशाब का रंग,
- तंदुरुस्ती की हालत में,
- हल्का पीला होता है,
- पर बीमारी में इसका पीलापन बढ़ जाता है और
- कभी-कभी कुछ ललाई भी आ जाती है।